इस बात से शायद हम सभी सहमत हों की हम भारतीय आज भी दास प्रवृति से ग्रसित हैं. ठहरिये, अपने-आप को पुरा दोष ना दीजिये, इस प्रवृति का बुनियादी आधार है विदेशियों का भारत पर पिछले लगभग १००० सालो से राज करना. जेनेटिक्स में अदाप्टेशन नाम का एक सिद्धांत होता है, जिसका मतलब यह होता है की जीव जन्तु वातावरण/परिस्तिथि के अनुसार अपने आप को ढाल लेते हैं समय के साथ. यह बदलाव धीमे धीमे होता है एक लंबे समय तक. इस अनुक्रिया अवधि में इंसान का जेनेटिक कोड भी धीरे धीरे बदलता रहता है जिसका असर पड़ता है परिणाम स्वरुप उसकी आदत / प्रवृति पर. अब इतने लंबे समय तक हम गुलामी में रहे हैं तो लाजमी है आज हम में गुलामी अनुवांशिकी व्यवहार मौजूद है. लेकिन एक आशा कि किरण जरुर मौजूद है आज. वो है इन्टरनेट, जो एक महान इन्कलाब है साबित होगा भारत के लिए. इन्टरनेट में आज़ादी कि महक है और भारतियों को सक्षम बनने का बल. आशा है इन्टरनेट भारत से गुलामी कि बेडियों को तोड़ने में समर्थ होगा इसी कलयुग में. हालाँकि इसे बदलने में वक़्त लगेगा और पीढी दर पीढी निकल जाए इस प्रक्रिया में तो भी आश्चर्य न कीजियेगा क्यों कि यह प्रक्रिया बहुत धीमी होती है.
अब कभी आप शिवराज पाटिल जी को सोनिया जी के आगे शास्टांग प्रणाम करते देखे तो समझ जाईये कि काचर का बीज कौन है.
सोमवार, 13 अक्तूबर 2008
शनिवार, 11 अक्तूबर 2008
सर आपकी जीनोम पत्री दिखाईये जरा...
कमाल करते हो जनाब, हम ही मिले थे क्या बेवकूफ बनाने के लिए। शायद ऐसा ही कुछ जवाब मिलेगा श्रीमान जी से अगर आपने उन्हें यह कह दिया की उनका २ मीटर लंबा डीएनए इतने छोटे कोशाणु बीज में समाया हुआ है उनके शरीर में की आँखों से देखा भी नही जा सकता। वे तो आप से कुट्टी कर बैठेंगे अगर आपने उनसे यह कह दिया की उनके हर लम्हे की जिंदगी इसी डीएनए से होकर गुजरती है। वे तो यह कहने लगेंगे की आपको कालिया के अमिताभ बनने की जरुरत नही है जिसमें अमिताभ कहता है, लाइन वहां से शुरू होती है जहाँ से कालिया खड़ा होता है।
परन्तु यह सब सच है।
और यह भी सच है कि इस २ मीटर के धागे में मौजूद है ३,००,००,००,००० अक्षरों की रेल लाइन नुमा पटरी, जो की ४ अक्षर (ऐ, सी, जी, टी) की वर्णमाला से बनी है। इस धागे में छुपा है कुबेर का खजाना याने कि अथाह ज्ञान का भण्डार जिसको सुलझाने/समझने के पीछे लगी है आज पुरी दुनिया। इस धागे में इतनी सुचना है जिसका अनुमानित आकार ५०० ब्रिटैनिका सारसंग्रह के बराबर है। और इसी धागे में ही मौजूद हैं अनुमानित ३०,००० जींस जो हर वक्त चुस्त रहते हुए और बिना शिकायत करते हुए शरीर कि कोश्काओं में प्रोटीन और अन्य कण बनाती रहती हैं। कब किस वक्त और आपके शरीर के किस कोने में कितनी मात्र में प्रोटीन बनाना है इन्हें बखूबी आता है। यही वो जींस है जो यह तय करती हैं कि आप गुस्सैल स्वाभाव के होंगे या ठंडे, या फ़िर आपके बालो या आँखों का रंग क्या होगा, या फ़िर आप गंजे कब होने लगेंगे.
इस धागे में जींस के अलावा अनगिनत काम के छोटे बड़े तत्व छुपे हैं, जिनको खोज निकालना एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस काम को अंजाम देने के पीछे लगे हैं दुनिया भर के जीव और संगणक वैज्ञानिक। कुछ सफलता भी मिली है पीछे कुछ सालो में लेकिन दिल्ली अभी बहुत दूर है। यह पहेली आसान स्वरुप में कुछ इस प्रकार कि है जैसे मैं आपको अंग्रेज़ी में लिखा हुआ एक परिच्छेद दूँ और कहूं कि आप मुझे उसका मतलब समझा दें। आप बोलेंगे अरे यार आप भी, ये भी कोई समस्या है क्या, इसे तो मैं एक आँख से पढ़कर बता सकता हूँ कि उस परिछेद में क्या लिखा है। सही फ़रमाया आपने। अब अनुमान कीजिये, मैं आपको वही परिछेद रुसी भाषा में दूँ तो क्या होगा। फ़िर आपके माथे पे चिंता कि लकीरें आ जाएँगी और आप तलाशने लगेंगे गूगल का अनुवाद यन्त्र। लेकिन इतनी जल्दी नही कीजिये, पहेली अभी खत्म नही हुई है। अगर अब मैं उस परिछेद में से विराम चिह्न और शब्दों के बीच कि दूरी हटा दूँ तो। आप बोलेंगे यार आप तो मुझे अब यातना देने लग गए, यह सवाल तो गोल कमरे के सामान है जिसका कोना खोजने के लिए कह रहे है। जी हाँ, यहाँ बताई गई पहेली जीनोम कि खोज का एक बहुत छोटा सा अंश मात्र है।
वैसे मुझे ऐसा लगता है कि इंसान कि जन्म पत्री और जीनोम पत्री कही ना कही जाके मिलेंगी जरुर किसी न किसी रूप में। और इस रहस्य कि एक कड़ी का रास्ता अपने हिंदू ग्रंथों से होकर निकलता हो, शायद.
ॐ
परन्तु यह सब सच है।
और यह भी सच है कि इस २ मीटर के धागे में मौजूद है ३,००,००,००,००० अक्षरों की रेल लाइन नुमा पटरी, जो की ४ अक्षर (ऐ, सी, जी, टी) की वर्णमाला से बनी है। इस धागे में छुपा है कुबेर का खजाना याने कि अथाह ज्ञान का भण्डार जिसको सुलझाने/समझने के पीछे लगी है आज पुरी दुनिया। इस धागे में इतनी सुचना है जिसका अनुमानित आकार ५०० ब्रिटैनिका सारसंग्रह के बराबर है। और इसी धागे में ही मौजूद हैं अनुमानित ३०,००० जींस जो हर वक्त चुस्त रहते हुए और बिना शिकायत करते हुए शरीर कि कोश्काओं में प्रोटीन और अन्य कण बनाती रहती हैं। कब किस वक्त और आपके शरीर के किस कोने में कितनी मात्र में प्रोटीन बनाना है इन्हें बखूबी आता है। यही वो जींस है जो यह तय करती हैं कि आप गुस्सैल स्वाभाव के होंगे या ठंडे, या फ़िर आपके बालो या आँखों का रंग क्या होगा, या फ़िर आप गंजे कब होने लगेंगे.
इस धागे में जींस के अलावा अनगिनत काम के छोटे बड़े तत्व छुपे हैं, जिनको खोज निकालना एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस काम को अंजाम देने के पीछे लगे हैं दुनिया भर के जीव और संगणक वैज्ञानिक। कुछ सफलता भी मिली है पीछे कुछ सालो में लेकिन दिल्ली अभी बहुत दूर है। यह पहेली आसान स्वरुप में कुछ इस प्रकार कि है जैसे मैं आपको अंग्रेज़ी में लिखा हुआ एक परिच्छेद दूँ और कहूं कि आप मुझे उसका मतलब समझा दें। आप बोलेंगे अरे यार आप भी, ये भी कोई समस्या है क्या, इसे तो मैं एक आँख से पढ़कर बता सकता हूँ कि उस परिछेद में क्या लिखा है। सही फ़रमाया आपने। अब अनुमान कीजिये, मैं आपको वही परिछेद रुसी भाषा में दूँ तो क्या होगा। फ़िर आपके माथे पे चिंता कि लकीरें आ जाएँगी और आप तलाशने लगेंगे गूगल का अनुवाद यन्त्र। लेकिन इतनी जल्दी नही कीजिये, पहेली अभी खत्म नही हुई है। अगर अब मैं उस परिछेद में से विराम चिह्न और शब्दों के बीच कि दूरी हटा दूँ तो। आप बोलेंगे यार आप तो मुझे अब यातना देने लग गए, यह सवाल तो गोल कमरे के सामान है जिसका कोना खोजने के लिए कह रहे है। जी हाँ, यहाँ बताई गई पहेली जीनोम कि खोज का एक बहुत छोटा सा अंश मात्र है।
वैसे मुझे ऐसा लगता है कि इंसान कि जन्म पत्री और जीनोम पत्री कही ना कही जाके मिलेंगी जरुर किसी न किसी रूप में। और इस रहस्य कि एक कड़ी का रास्ता अपने हिंदू ग्रंथों से होकर निकलता हो, शायद.
ॐ
मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008
गूग्लिये की क़ैद में मेरा नया नवेला ब्लॉग ... और कृत्रिम बुद्धि!
कल गूगल ने मेरा ब्लॉगर अकाउंट निष्क्रीय कर दिया था स्पैम समझते हुए. उसी से याद आया के गूगल स्पैम आखिर मशीन (सॉफ्टवेर) ही तो है, इसलिए उससे गलती होना लाजमी है मर्फी कानून के नियम से. चलिए थोडी चर्चा करते हैं क्या है यह गूग्लिये की यह मशीन. यह कृत्रिम बुद्धि के बल पर यह तय करती है की कोई अकाउंट स्पैम है या नही. अब कृत्रिम बुद्धि क्या बला है यह देखते हैं. कृत्रिम बुद्धि याने की कृत्रिम तरीके से तईयार की गई बुद्धि. चलिए उधाहरण देखते हैं इसका:
आप जब अमिताभ की फ़िल्म १९७० में देखते तो यह निश्चित मान के चलते की उसमें एक्शन होगा. ऐसा क्यों? क्यों की आपके दीमाग ने अमिताभ की ऐसी ही कुछ परछाई सहेज के रखी हुई थी. तुलना कीजिये, किसी विदेशी से जिससे आप अमिताभ का जिक्र करेंगे तो वो बंगले झाकने लगेगा. यह इसलिए है क्यों की इंसान का देमाग हर वक्त नए एविडेंस की तलाश मैं रहता है जिनकी बुनियाद पर पुराणी छवि को सुधरता रहता है. यही वजह है आप कभी तो अपने पड़ोसी को अच्छा बताते हैं और कभी बुरा.
कृत्रिम बुद्धि आधारित मशीनें भी कुछ ऐसे ही काम करती हैं; नए एविडेंस की मौजूदगी में अपना नजरिया बदलती रहती हैं. अच्छा ये बताईये नारंगी रंग को आप ज्यादा लाल कहेंगे या ज्यादा गुलाबी? फंस गए ना जाल में! कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं जिनको एक कंप्यूटर इंसान से शायद ज्यादा समजदारी से सुलझा सकता है. कृत्रिम बुद्धि आधारित मशीनों का काम करने का स्टाइल कुछ वैसा ही होता है जैसे एक डाक्टर अपने मरीज की नब्ज़ टटोल कर और सवाल पूछ कर बीमारी निर्धारित करता है.
'गूगल स्पैम' भी अनेको सिग्नल एकत्रित करके उनका मिश्रण करते हुए यह फ़ैसला करता है की ईमेल/ब्लॉग पोस्ट अन्य स्पैम है या नही. और इस कार्यवाई में गणित का बहुत योगदान होता है.
आप जब अमिताभ की फ़िल्म १९७० में देखते तो यह निश्चित मान के चलते की उसमें एक्शन होगा. ऐसा क्यों? क्यों की आपके दीमाग ने अमिताभ की ऐसी ही कुछ परछाई सहेज के रखी हुई थी. तुलना कीजिये, किसी विदेशी से जिससे आप अमिताभ का जिक्र करेंगे तो वो बंगले झाकने लगेगा. यह इसलिए है क्यों की इंसान का देमाग हर वक्त नए एविडेंस की तलाश मैं रहता है जिनकी बुनियाद पर पुराणी छवि को सुधरता रहता है. यही वजह है आप कभी तो अपने पड़ोसी को अच्छा बताते हैं और कभी बुरा.
कृत्रिम बुद्धि आधारित मशीनें भी कुछ ऐसे ही काम करती हैं; नए एविडेंस की मौजूदगी में अपना नजरिया बदलती रहती हैं. अच्छा ये बताईये नारंगी रंग को आप ज्यादा लाल कहेंगे या ज्यादा गुलाबी? फंस गए ना जाल में! कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं जिनको एक कंप्यूटर इंसान से शायद ज्यादा समजदारी से सुलझा सकता है. कृत्रिम बुद्धि आधारित मशीनों का काम करने का स्टाइल कुछ वैसा ही होता है जैसे एक डाक्टर अपने मरीज की नब्ज़ टटोल कर और सवाल पूछ कर बीमारी निर्धारित करता है.
'गूगल स्पैम' भी अनेको सिग्नल एकत्रित करके उनका मिश्रण करते हुए यह फ़ैसला करता है की ईमेल/ब्लॉग पोस्ट अन्य स्पैम है या नही. और इस कार्यवाई में गणित का बहुत योगदान होता है.
रविवार, 5 अक्तूबर 2008
भारत चीन का गुलाम....!
चौकिये मत, यह सच भी हो सकता है! एक सशक्त राष्ट्र बनने में अगर भारत भविष्य में नाकाम होता है तो कुछ ऐसा ही होता नज़र आ रहा है. ठीक वैसे ही जैसे आज मेक्सिको का हाल है. वहां लोगो के पास खाने के पैसे नही है और उनकी रोजीरोटी अमेरिका के रहमोकरम पर निर्भर है. अमेरिका में आज मजदूरों की एक बड़ी खेप मेक्सिको से आती है. कहावत है 'विन्नर टेक्स आल', याने कि शक्तिमान का और शक्तिशाली होना और कमजोर का और कमजोर. यही वजह है कि भारत के पास आज आगे बढ़ने के अलावा कोई और विकल्प नही है. और इस विकल्प को हकीकत बनाने के पीछे सबसे बड़ा हाथ होगा अमेरिका का. यही वजह नींव है अमरीकी और भारत के बीच नुक्लेअर डील की. ऐसा नही है अमेरिका का भारत के प्रति ह्रदय परिवर्तन का कारण अमेरिका का दयाभाव है. ज्ञात रहे उपर दर्शायी गई कहावत को. ये कहानी है वर्चस्व की: अमेरिका और चीन के बीच की और भाग्य से यह वर्चस्व की राह भारत से होकर गुजरती है. अमेरिका भली भांति समजता है कि उनको एक उन्नत भारत से हाथ मिलाना बेहद आसन होगा बनिस्पत एक गरीब भारत से. क्यों की गरीब भारत को उन्नत चीन का गुलाम बनने से कोई नही रोक पायेगा. इसीलिए भारत ही नही अमेरिका के पास भी उन्नत भारत के सिवाय दूसरा विकल्प नही है। मेरा विचार है भारत का उदय होना निश्चित है, यहाँ का नेता ना चाहे तो भी, क्यों की यह अब अमेरिका की एक खास वजह बन चुकी है.
अमेरिका, अमेरिका क्यों है?
वैसे तो सब जानते ही हैं कि अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र है. परन्तु कम ही लोग इस पर शायद गौर फरमाते होंगे कि ऐसा क्यों है? मेरा विचार है कि इसका सबसे अहम् कारण है उनकी अप्रवास योजना. यह देश प्रारम्भ से ही इस बात में विश्वास करता आया है कि किसी भी सफलता के पीछे हाथ होता है काबिल लोगो का. अगर अमेरिका कि नज़र में कोई काबिल है तो उसके लिए वहां का कानून आडे आने के बजाये समर्थन करता है. इसी वजह से यहाँ पे आप हर क्षेत्र के बेहतरीन फनकारों को पाएंगे. उनके जैसी अप्रवास योजना दुनिया में किसी देश में नही पाई जाती. मेरी नज़र में यही एक कारण सबसे बड़ा अन्तर है आज के अमेरिका में और पुराने समय के ब्रितानिया में जब ब्रितानिया का दुनिया पर एक छत्र राज था. जहाँ आज भी अमेरिका नया सिखने कि जिज्ञासा एक छोटे बच्चे कि तरह रखता है ब्रितानिया अपने गुरुर के बोझ में दब के रह गया. अभी अमेरिका में मंदी जा जबरदस्त दौर चल रहा है और लोग तो इस देश कि चिता कि बात भी करने लगे हैं. हालाँकि मेरा मानना है इस मंदी के उपरांत ये लचीला देश और भी ताक़तवर बनकर उभरेगा, और साथ ही उपजेंगी नई दिशाएं नई टेक्नोलॉजी में. यद्यपि इस देश कि कई नीतिया दूसरे देशो कि नज़रों में सही न हो लेकिन अपने देशवासियों के लिए तो वे स्वर्ग से कम नही. मैं यहाँ जिस बात से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ हूँ वो है यहाँ के बच्चो का यहाँ के समाज में ओहदा. अमेरिका अपने बच्चो के सामने नतमस्तक हो जाता है. यहाँ सबसे कड़े कानून हैं बच्चे सम्बन्धी जुर्म के खिलाफ. जैसे चाँद कि खूबसूरती पे भी दाग है, वैसे ही यहाँ भी कुछ परेशानियाँ हैं - उन पर लेख कभी बाद में.
शनिवार, 4 अक्तूबर 2008
मेरी पहली पोस्ट!
नमस्कार.
बहुत दिनों से सोच विचार करने के उपरांत, लीजिये हम भी कूद पड़े हैं हिन्दी की ब्लोगिया दुनिया में। आठवी कक्षा के बाद शायद पहली दफा मौका मिला है हिन्दी में कुछ लिखने का। इस दरमियाँ यह भी मालूम ना चला की हिन्दी से कितना दूर चला गया था मैं। वैसे हिन्दी के मौजूदा ब्लोग्स पढ़कर हिन्दी में रूचि बरक़रार रही। इसके लिए हिन्दी के ब्लॉगर भाईयों को बहुत बहुत आभार। खास तौर पे अनुनाद भाई का जिन्होंने ब्लॉग बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। निश्चित ही मेरी मौजूद हिन्दी में बहुत सुधार की गुंजाईश है और इस दिशा में मेरा प्रयास बना रहेगा. यह भी आशा है हिन्दी ब्लोगरी दुनिया में दिलचस्प लोगो से मुलाकात होगी।
मेरा परिचय: मैं मूलत: झुंझुनू जिला (राजस्थान) से हूँ। जयपुर में स्कूली पढ़ाई करने के उपरांत, आई आई टी मुंबई, इम्पेरिअल कॉलेज, लन्दन, नेशनल यूनिवर्सिटी, सिंगापुर से शिक्षा प्राप्त कर वर्तमान में हारवर्ड यूनिवर्सिटी में रिसर्च फेल्लो के पद पैर कार्यरत हूँ। मेरा रिसर्च डोमेन मुख्या तौर पे जीनोम डाटा मायनिंग है।
लीजिये ब्लॉग का तो आगाज़ कर दिया है लेकिन किस विषय पे मैं लिखूंगा यह अभी निर्धारित नही है। कोशिश रहेगी की हफ्ते में कम से कम एक बार पोस्ट जरुर लिखूं। चलिए देखते हैं कब कब क्या होता है जब जब जो होता है।
अभी के लिए इतना ही।
टाटा.
बहुत दिनों से सोच विचार करने के उपरांत, लीजिये हम भी कूद पड़े हैं हिन्दी की ब्लोगिया दुनिया में। आठवी कक्षा के बाद शायद पहली दफा मौका मिला है हिन्दी में कुछ लिखने का। इस दरमियाँ यह भी मालूम ना चला की हिन्दी से कितना दूर चला गया था मैं। वैसे हिन्दी के मौजूदा ब्लोग्स पढ़कर हिन्दी में रूचि बरक़रार रही। इसके लिए हिन्दी के ब्लॉगर भाईयों को बहुत बहुत आभार। खास तौर पे अनुनाद भाई का जिन्होंने ब्लॉग बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। निश्चित ही मेरी मौजूद हिन्दी में बहुत सुधार की गुंजाईश है और इस दिशा में मेरा प्रयास बना रहेगा. यह भी आशा है हिन्दी ब्लोगरी दुनिया में दिलचस्प लोगो से मुलाकात होगी।
मेरा परिचय: मैं मूलत: झुंझुनू जिला (राजस्थान) से हूँ। जयपुर में स्कूली पढ़ाई करने के उपरांत, आई आई टी मुंबई, इम्पेरिअल कॉलेज, लन्दन, नेशनल यूनिवर्सिटी, सिंगापुर से शिक्षा प्राप्त कर वर्तमान में हारवर्ड यूनिवर्सिटी में रिसर्च फेल्लो के पद पैर कार्यरत हूँ। मेरा रिसर्च डोमेन मुख्या तौर पे जीनोम डाटा मायनिंग है।
लीजिये ब्लॉग का तो आगाज़ कर दिया है लेकिन किस विषय पे मैं लिखूंगा यह अभी निर्धारित नही है। कोशिश रहेगी की हफ्ते में कम से कम एक बार पोस्ट जरुर लिखूं। चलिए देखते हैं कब कब क्या होता है जब जब जो होता है।
अभी के लिए इतना ही।
टाटा.
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